
1985 में आई पाताल भैरवी सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि 80s का VFX यूनिवर्स थी, जब CGI का मतलब था “चमत्कार ग्रीन इंक”।
निर्देशक के. बापय्या ने जीतेन्द्र को माली बनाकर ऐसा “देवी कनेक्ट” दिया कि आज के सुपरहीरो भी शर्मा जाएं।
फिल्म शुरू होती है उज्जैन की रॉयल दुनिया से, जहाँ राजकुमारी इंदुमती (जया प्रदा) और माली रामू (जीतेन्द्र) के बीच प्रेम भी है और समस्याएं भी — क्योंकि 80s में प्यार करना सबसे बड़ा अपराध था (सिर्फ फिल्मों में)।
कादर खान का ‘जादू’ – बजट में भी भैरव लुक!
फिल्म का असली हीरो भले जीतेन्द्र हैं, लेकिन कादर खान का मांत्रिक ‘हुसैर’ रोल ऐसा है कि आज भी लगता है – “थोड़े और पैसे मिल जाते तो हॉलीवुड कांप जाता।”
उनका डायलॉग डिलीवरी और भौं उठाने का स्टाइल अपने आप में “ब्लैक मैजिक” था। वो देवी पाताल भैरवी की मूर्ति चाहते हैं – जो “फुलफिल एनी विश” देती है।
बिलकुल आज की Amazon Prime जैसी, फर्क बस इतना कि यहाँ सब्सक्रिप्शन के लिए बलि देनी पड़ती थी।
जया प्रदा और जितेंद्र – ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री विद क्लासिक ट्वर्ल्स
जया प्रदा ने इस फैंटेसी ड्रामा में क्लासिक राजकुमारी बनकर ऐसा जलवा दिखाया कि हर बार झनक-झनक गाना आते ही स्क्रीन चमक उठती थी।
जितेंद्र की डांसिंग और रील हीरोइज़्म — “देवी भी बोले – इस बंदे में एनर्जी है!”
उनकी माली से मसीहा बनने की जर्नी ऐसा लगती है जैसे Mythology और मसाला ने हाथ मिला लिया हो।
बप्पी लाहिड़ी म्यूजिक = सोने पे चांदनी
बप्पी दा ने फिल्म को अपने ट्रेडमार्क गोल्डन सिंथ बीट्स से भरा। किशोर कुमार, लता मंगेशकर और आशा भोसले की आवाज़ में जो जादू था, वो आज भी Spotify प्लेलिस्ट को पुराना नहीं लगने देता।
“मेहमान नज़र की बन जा एक रात के लिए” तो literally आज भी Instagram reels vibe है।
स्पेशल इफेक्ट्स – जब धुआं ही ड्रामा था!
80s की फिल्मों में “स्पेशल इफेक्ट्स” का मतलब होता था – धुआं, चमकती रोशनी, और कभी-कभी कटे एडिट्स में दिखता जादू।
फिल्म में जो “मूर्तियाँ बोलती हैं”, वो असल में दर्शक का सब्र बोलता है — “वाह! तब भी बॉलीवुड फैंटेसी बना सकता था।”

जब माली ने मारा मांत्रिक को
रामू बनाम हुसैर का फाइनल फाइट ऐसा है जैसे “रामायण में वर्ल्ड कप फाइनल चल रहा हो।”
हनुमान (शक्ति कपूर) की कॉमिक टाइमिंग और बिंदु की महारानी स्टाइल ने फिल्म को कॉमिक-रिलीफ विद साड़ी-ड्रामा टच दिया। अंत में देवी पाताल भैरवी प्रसन्न होकर मूर्ति देती हैं और कहती हैं — “अब जाओ, और 80s को यादगार बनाओ।”
क्यों देखें: क्योंकि ये वो टाइम था जब बॉलीवुड की फैंटेसी, जादू और इमोशन – सब एक ही थाली में परोसे जाते थे।
क्यों हँसें: क्योंकि स्पेशल इफेक्ट्स देखकर लगेगा कि 80s सच में “Make in India” का पायलट प्रोजेक्ट था।
पाताल भैरवी सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि देवी की अनुमति से बनी मिथक-मसाला ब्लॉकबस्टर थी। अगर आपने ये नहीं देखी, तो समझिए 80s के “भूतिया इंडियाना जोन्स” से आप चूक गए।
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